वृद्धि एवं विकास की संकल्पना एवं सिद्धान्त ( Concept and theory of growth and development )

वृद्धि एवं विकास की संकल्पना एवं सिद्धान्त ( Concept and theory of growth and development )
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                      विकास एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है, जो जन्म से लेकर जीवन पर्यंत अविराम चलती रहती है। विकास केवल शारिरिक वृद्धि की ओर संकेत नहीं करता बल्कि इससे अंतर्गत वे सभी शारीरिक, मानसिक ,सामाजिक और संवेगात्मक परिवर्तन शामिल होते हैं, जो बच्चे के गर्भ काल से लेकर मृत्युपर्यंत निरंतर प्रक ट होते रहते हैं। इस प्रकार बाल विकास के विषय का संबंध बच्चों के व्यवहार में समय के साथ होने वाले शारीरिक व मानसिक परिवर्तन से है। यह विषय इससे भी संबंधित है, कि ये परिवर्तन क्यों और कैसे होते हैं?  अतः इस विषय का उद्देश्य शारिरिक, सामाजिक ,भावात्मक,भाषायी व ज्ञानात्मक क्षेत्रों में विकास को समझना और उनकी व्याख्या करना है।

  • वृद्धि और विकास की संकल्पना

- अभिवृद्धि एवं विकास का आशय फिर अनुकूलन प्रभावी तथा संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास है।   अभिवृद्धि एवं विकास के लिए वंशानुक्रम एवं वातावरण का महत्वपूर्ण योगदान होता है।  वंशानुक्रम द्वारा व्यक्ति को जो भी प्राप्त होता है वातावरण उसे परिमार्जित कर प्रभावित करता है। अभी वह विकास की प्रक्रिया है उस समय से प्रारंभ हो जाती है, जब से बालक का बीजारोपण होता है तथा उसके जन्म के बाद से निरंतर शारीरिक मानसिक सामाजिक पक्ष आदि  का विकास होता है।  

- अध्यापक को बालक की अभिवृद्धि एवं उसके साथ होने वाले विभिन्न प्रकार के विकास तथा उनकी विशेषताओं का ज्ञान होना आवश्यक है तभी वह शिक्षा की योजना का  क्रियान्वय सही तरीके से कर सकता है। 


 वृद्धि : वृद्धि से तात्पर्य शरीर के आकार में वृद्धि से है वजन लंबाई और आंतरिक अंगों के आकार का बढ़ना ही वृद्धि  है। 


 सोरेन्स के अनुसार  सामान्य रूप से अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग शरीर और उसके अंगों के भार और आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है इस बुद्धि का मापन किया जा सकता है।  अभिवृद्धि केवल शारीरिक पक्ष को प्रकट करती  है। 

 वृद्धि एक क्रमिक प्रक्रिया है।  इस शैशवावस्था में बुद्धि तीव्र ,बाल्यावस्था में मंद व 11 वर्ष की आयु में वृद्धि तीव्र हो जाती है।परिपक्वता प्राप्त होने पर अभिवृद्धि रुक जाती है।   आकार में वृद्धि के  अतिरिक्त शरीर में अन्य परिवर्तन भी होते हैं।   इनमें शरीर के अंगों के रूप में परिवर्तन, उनकी जटिलता और कार्य में वृद्धि और सोचने समझने की योग्यता व  सामाजिक कौशलों में भी शामिल है  दूसरे शब्दों में  हमारी  मात्र वृद्धि  ही नहीं होती बल्कि विकास भी होता है। 


 विकास : विकास से अभिप्राय है मात्रात्मक परिवर्तन के साथ-साथ गुणात्मक परिवर्तन.

 इसमें केवल संरचना संबंधी परिवर्तन ही नहीं बल्कि प्रकार्यात्मक परिवर्तन भी शामिल होते हैं।  विस्तृत अर्थ में विकास से तात्पर्य है शारीरिक और तंत्रकीय  संरचना, विचार प्रक्रियाओ  और  व्यवहार में समय के साथ होने वाले   क्रमबद्ध और अपेक्षाकृत स्थिर परिवर्तनों से है  जिनसे प्रत्येक जीव जीवन के प्रारंभ से अंत तक गुजरता है।  बुद्धि विकास की वृहतर  प्रक्रिया का केवल एक पहलू है,  शारीरिक परिवर्तनों के दृष्टिगोचर ना होने पर भी विकास जारी रहता है। 


  • ई.बी.हरलॉक  ने विकास की अवस्थाएं इस प्रकार बताई है। 

गर्भाधान काल : जन्म से पहले की अवस्था -  गर्भ धारण करने से जन्म तक का काल।  

 शैशव अवस्था :  जन्म से लेकर 2 सप्ताह। 

 शिशु काल :  2 सप्ताह से 2 वर्ष तक। 

 बाल्यावस्था :  2 वर्ष से लेकर 11 /12 वर्ष तक

 पूर्व बाल्यावस्था -  2 से 6 वर्ष तक। 

 उत्तर बाल्यावस्था -  7 से 12 वर्ष तक। 

 किशोरावस्था:  12 अथवा 13 वर्ष से 20 अथवा 21 वर्ष। 

 प्रारंभिक किशोरावस्था -  16 वर्ष से 17  वर्ष। 

 उत्तर किशोरावस्था -  20 वर्ष से 21 वर्ष। 


  •  कॉल महोदय  ने विकास की अवस्थाओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया है। 

 शैशवावस्था- जन्म से 2 वर्ष तक। 

 प्रारंभिक बाल्यावस्था - 2 से 5 वर्ष तक। 

 मध्य बाल्यावस्था-  लड़के 6 से 12 वर्ष, लड़कियां 6  से 10 वर्ष। 

 पूर्व किशोरावस्था या उत्तर बाल्यावस्था-  लड़के 13  से 14 वर्ष, लड़कियां 11 से 12  वर्ष ।

 आरंभिक किशोर अवस्था-  लड़के 15 से 16 वर्ष,  लड़कियां 12  से 14 वर्ष। 

 मध्य किशोरावस्था -  लड़के 17  से 18 वर्ष तक ,  लड़कियां 15 से 17 वर्ष तक।

 उत्तर किशोरावस्था -  लड़के 19 से 20 वर्ष तक ,  लड़कियां 18  से 20 वर्ष तक।

 आरंभिक प्रौढ़ावस्था -  21 से 34 वर्ष तक। 

 मध्य  प्रौढ़ावस्था -  35 से  49  वर्ष तक।   

 उत्तर  प्रौढ़ावस्था-  50 से 64 वर्ष तक। 

 आरंभिक वृद्धावस्था -  65 से 74 वर्ष तक। 

 वृद्धावस्था-  75 वर्ष से  आगे की आयु तक। 


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महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर (हिन्दी में)

1. Psychology शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया – रुडोल्फ गॉलकाय द्वारा 1590 में

2. Psychology की प्रथम पुस्तक Psychologia लिखी – रुडोल्फ गॉलकाय ने

3. Psychology शब्द की उत्पत्ति हुई है – Psyche+Logos यूनानी भाषा के दो शब्दों से

4. विश्व की प्रथम Psychology Lab – 1879 में विलियम वुंट द्वारा जर्मनी में स्थापित

5. विश्व का प्रथम बुद्धि परीक्षण – 1905 में बिने व साइमन द्वारा

* भारत का प्रथम बुद्धि परीक्षण – 1922 में सी. एच. राईस द्वारा

6. आधुनिक मनोविज्ञान का जनक – विलियम जेम्स

7. आधुनिक मनोविज्ञान के प्रथम मनोवैज्ञानिक – डेकार्टे

8. किन्डरगार्टन विधि के प्रतिपादक – फ्रोबेल

9. डाल्टन विधि के प्रतिपादक – मिस हेलेन पार्कहर्स्ट

10. मांटेसरी विधि के प्रतिपादक – मैडम मारिया मांटेसरी

11. संज्ञानात्मक आन्दोलन के जनक – अल्बर्ट बांडूरा

12. मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धांत/संप्रदाय और उनके जनक –

गेस्टाल्टवाद (1912) – कोहलर, कोफ्का, वर्दीमर व लेविन

संरचनावाद (1879)– विलियम वुंट

व्यवहारवाद (1912) – जे. बी. वाटसन

मनोविश्लेशणवाद (1900) – सिगमंड फ्रायड

विकासात्मक/संज्ञानात्मक – जीन पियाजे

संरचनात्मक अधिगम की अवधारणा – जेरोम ब्रूनर

सामाजिक अधिगम सिद्धांत (1986) – अल्बर्ट बांडूरा

संबंधवाद (1913) – थार्नडाईक

अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत (1904) – पावलव

क्रियाप्रसूत अनुबंधन सिद्धांत (1938) – स्किनर

प्रबलन/पुनर्बलन सिद्धांत (1915) – हल

अन्तर्दृष्टि/सूझ सिद्धांत (1912) – कोहलर


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